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1 लाख रुपए निवेश कर हर महीने कमाएं 10 लाख की आमदनी, करें इस चीज की खेती
भारत में बहुत सारे लोग परंपरागत खेती छोड़कर औद्योगिक खेती करना पसंद करते हैं। क्योंकि परंपरागत खेती में लागत के अनुसार उतना अधिक रिटर्न नहीं मिल पाता है जबकि औद्योगिक खेती में कम समय में ही बेहतर रिटर्न मिलता है और उसकी मांग भी बाजार में काफी अधिक होती है। इस आर्टिकल में हम आपको एक ऐसे बिजनेस के बारे में बताएंगे, जिसे शुरू करके आप हर महीने लाखों रुपए कमा सकते हैं।
मशरूम की मार्केट में है खूब डिमांड:
भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बहुत सारे लोग मशरूम की सब्जी खाना पसंद करते हैं और यह काफी महंगा भी बिकता है। मार्केट में अधिक डिमांड होने के बावजूद सामान्य किसान इसकी खेती नहीं करते हैं। लेकिन ऐसे किसान जो औद्योगिक खेती करना पसंद करते हैं उनके लिए मशरूम एक बेहतर विकल्प है।
यदि आप अधिक मात्रा में मशरूम का उत्पादन करते हैं तो इसे देश के अलग-अलग मंडियों में बेच सकते हैं और लाखों रुपए कमा सकते हैं। इतना ही नहीं यदि आप इस बिजनेस को व्यापक स्तर पर फैलाना चाहते हैं तो विदेशों में भी इसकी सप्लाई की जा सकती है।
मशरूम की खेती से कैसे होगी कमाई?
अब आप सोच रहे होंगे की आखिर कौन सा वह बिजनेस है, जिससे इतनी मोटी कमाई हो सकती है तो हम आपको बता दें कि वह मशरूम की खेती का बिजनेस है। इस बिजनेस में लगाई गई लागत से 10 गुना अधिक फायदा हो सकता है। क्योंकि आजकल मार्केट में मशरूम की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ चुकी है और लोग इसे खाना पसंद करने लगे हैं।
अब यदि हम बात करें इसमें होने वाली कमाई के बारे में तो आप यदि इस बिजनेस में 1 लाख का निवेश करते हैं तो आपको 10 लाख रुपए तक की इनकम हो सकती है। चलिए जानते हैं मशरूम की खेती के बारे में।
कैसे तैयार होती है मशरूम की फसल और इसमें कितना समय लगता है?
मशरूम की खेती करने के लिए सबसे पहले आपको कंपोस्ट खाद तैयार करनी पड़ती है, जिसके लिए आपको चावल या गेहूं के भूसे को केमिकल्स के साथ मिलाकर कुछ दिनों के लिए कम्पोस्ट में बदलने के लिए यूं ही छोड़ना पड़ता है।
जब यह भूसा कंपोस्ट खाद में बदल जाता है, तब इसे समतल जगह पर 6-8 इंच मोटी परत के रूप में बिछा दिया जाता है और फिर इसमें मशरूम के बीज लगा दिए जाते हैं तथा बीजो को कंपोस्ट में दबा दिया जाता है। इसके बाद मशरूम की फसल को तैयार होने में 40 से 45 दिनों का समय लगता है।
किस भाव मे बिकता है मशरूम?
मशरूम की खेती करने आपको में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है। आप इसे 1 लाख रुपये से शुरू करके एक अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं यदि हम 1 किलो मशरूम की बात करें तो इसे उगाने में मात्र 25-30 का खर्च आता है और यह मार्केट में 1 किलो मशरूम 200 से 300 रुपये प्रति किलो मे बिकता है।
इसके अलावा यदि आप अपने मशरूम की क्वालिटी को इंप्रूव कर सकते हैं तो अच्छे होटलों और रेस्टोरेंट्स में बेहतर क्वालिटी का मशरूम 400 से 500 रुपये प्रति किलो में भी बिक सकता है।
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सपने तो हर कोई देखता है, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो अपने सपनों को सच करते हैं। बिहार के हाजीपुर की रुचिला रानी उन लोगों में से हैं जिन्होंने न सिर्फ अधिकारी बनने का सपना देखा बल्कि आज उस सपने को भी पूरा किया है।
एक साल में चार सरकारी नौकरी की परीक्षा पास कर चुके रुचिला ने शादी एक महीने तक खत्म होते ही बीपीएससी पास कर जिले को फेमस कर दिया है, जिसके बाद से लोग अफसर की बेटी के ससुराल होने की बात कहने लगे हैं।
ग्रामीण परिवेश और मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली रुचिला ने अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम से ना सिर्फ एक साल में चार सरकारी नौकरी हासिल की बल्कि शादी के तीसवें दिन ही बीपीएससी की परीक्षा पास कर अधिकारी बन गई हैं, जिसके बाद उसके मायके से लेकर ससुराल तक जश्न का माहौल है. मायके में घरवलों के साथ-साथ गांव के लोग भी अपनी इलाके की बेटी की इस सफलता पर उत्साहित हैं तो पति को भी अपनी नई नवेली दुल्हन पर गर्व हो रहा है.

बीपीएससी की परीक्षा में 215वां रैंक पाने वाली रुचिला ने घर पर ही रहकर सेल्फ स्टडी से यह मुकाम हासिल की है. इसके पीछे उसके माता पिता का बहुत बड़ा योगदान है. पेशे से सरकारी शिक्षक उसके पिता ने पाई-पाई जोड़कर अपनी बेटी को पढ़ाया और समाज की परवाह किये बगैर अपनी बेटी को इतना काबिल बनाया कि आज बेटी के मायके से लेकर ससुराल तक उत्साह है.
रूचिला की मां ने अपनी बेटी को उन लोगो की नजरों से छिपाकर रखा जो लोग बेटियों को घर मे बिठाने पर ताना मारने का काम करते हैं, मां ने तो आज तक अपने पैरों में पायल तक नहीं पहना क्योंकि पायल की आवाज बेटी की पढ़ाई में खलल डाल सकता था लेकिन आज बेटी की सफलता की गूंज पूरे जिले में सुनाई दे रही है.
बीपीएससी पास करने और प्रोबेशनरी ऑफिसर बनने से पहले रुचिला ने फरवरी महीने में शराबबंदी विभाग में बिहार के शिक्षकों, बिहार पुलिस, रेलवे के इंस्पेक्टर की नौकरी में अपनी जगह बनाई थी, लेकिन आखिरकार सिविल सेवा में जाने का जुनून विकसित हो गया। उन्होंने बीपीएससी की परीक्षा दी, इसे भी पास किया।
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छत्तीसगढ़ मे ‘ग्रीन गोल्ड’ से किसान हुए अमीर, तीन महीने में ही लाखों रुपये का फायदा
छत्तीसगढ़ के ‘ग्रीन गोल्ड’ के तेंदूपत्ता किसान हैं अमीर, तीन महीने में ही लाखों रुपये का फायदा

क्या आप जानते है, छत्तीसगढ़ का हरा सोना किसे कहा जाता है? अगर नहीं तो हम आपको बता दें कि, तेंदूपत्ता को हीं यहां हरे सोने का नाम दिया जाता है क्योंकि इसकी बिजनेस से आप सोने चांदी के बराबर की कमाई कर सकते हैं। यहां के आदिवासी इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमाते है इसके अलावें इस खेती से सरकार को भी अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है।
आखिर क्यों है इतना महंगा हरा सोना?
बता दें कि, तेंदूपत्ता से बीड़ी तैयार होती है और उसे खरीदने के लिए लोग साउथ से छत्तीसगढ़ जाते है। जानकारी के मुताबिक, केवल इनकी तोड़ाई से आदिवासी लोगों को अच्छी कमाई प्राप्त हो जाती है।

गुणवता के वजह से है काफी डिमांड
तेंदूपत्ता के गुणवाता के वजह से ही। इनकी मार्केट में भारी डिमांड है। कहा जाता है कि, यह एक ऐसा कारोबार है कि अगर इसमें थोड़ा भी लापरवाही बरती जाए तो वो इसके गुणवत्ता को कम कर सकता है।
बता दें कि, यह आकार और अपने मोटापन की वजह से बीड़ी के लिए इस्तेमाल होते हैं और इसी कारण वश भी इसकी खूब डिमांड है।
तीन महीने तक 75 लाख लोगों को मिलता है रोजगार
द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़े के अनुसार, तेंदूपत्ता से 75 लाख लोगों को तीन महीने तक रोजगार मिलता है और जब इन पत्तो से बीड़ी बनती है तो उस काम में भी करीबन 30 लाख लोगों को तो रोजगार मिलती हीं है।

अब राज्य सरकार भी दे रही है इस पर तवज्जो
पहले तेंदूपत्ता के संग्रहण करने वाले आदिवासियों की हालात बेहतर नहीं थे क्यूंकि उस दौरान तेंदूपत्ता के रेट भी कम थे लेकिन आज के समय में तो राज्य सरकार भी इसको तवज्जो देने लगी है।
रिपिर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 2002 की बात करें तो उस समय प्रदेश में तेंदुपत्ता का मूल्य 400 रुपए प्रति मानक बोरा था लेकिन आज के समय में इसे बढ़ाकर 1500 रुपए बोरा कर दिया गया है। तथा आज के समय में इसका दाम चार हजार रुपए प्रति मानक बोरा है। अब इसकी दिन प्रतिदिन इतना रेट बढ़ रहा है कि, आदिवासियों के लिए यह बहुत खुशी की बात है क्योंकि रेट बढ़ने के साथ इनकी आमदनी भी बढ़ी है।
अप्रैल माह में होती है तेंदूपत्ते की तोड़ाई
बता दें कि, आदिवासी लोग अप्रैल माह में तेंदूपत्ते की तोड़ाई करते हैं। बता दें कि, एक बोरे में तेंदूपत्ते की एक हजार गड्डी होती है और हर गड्डी में 50 पत्ते होते हैं। इन पत्तों की गड्डियों को धूप में सुखाया जाता है और इससे बीड़ी बनाया जाता है।
विदेशों में भी है भारी मांग
आज के समय में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल जैसे देश के कई राज्यों में तेंदूपत्ते की खूब डिमांड है इसके साथ ही विदेशों जैसे अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे कई देशों में भी इसकी भारी मांग है।
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BUSINESS IDEAS: पुणे में एक अनोखा घर जहां रोजाना 50 से अधिक पक्षी शिविर लगाते हैं
पुणे में एक अनोखा घर जहां रोजाना 50 से अधिक पक्षी शिविर लगाते हैं

आज ज्यादातर पक्षी बढ़ते प्रदूषण के कारण धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। पहले जहां गौरैया हर घर में डेरा डालती थीं, वहीं आज आपको कहीं गौरैया नजर नहीं आती। इसी तरह कई पक्षी ऐसे भी हैं, जो अब पहले की तुलना में कम दिखाई देते हैं। ऐसे में पक्षी प्रेमी उन्हें देखने के लिए तरह-तरह के विकल्प बना रहे हैं
आज हम आपको औरंगाबाद (Aurangabad) की एक ऐसे ही पक्षी प्रेमी राधिका सोनवणे (Radhika Sonawane) से
रूबरू कराने वाले हैं, जिन्हे पक्षी बचपन से हीं पसंद थे और वर्तमान समय में वे पक्षियों को अपने घर में बुलाने के लिए हॉल की बालकनी और किचन बालकनी दोनो में फीडर लगाए हैं, जहाँ पक्षियों के लिए खाना और पानी सभी चीजें उपलब्ध होती है।
लॉकडाउन में समझा पक्षियों को ज्यादा करीब से

राधिका (Radhika Sonawane) बताती हैं कि, जब वे शुरू में अपार्टमेंट में रहने आई थी तो सबसे पहले उनकी मुलाकात यहां पर रहने वाली स्मिता आंटी से हीं हुई थी और उन्होंने अपने घर में कई बर्ड फीडर लगाए हुए थे, जहां कई पक्षी आया करते थे। चूकि राधिका भी शुरू से पक्षी प्रेमी थी, जिस कारण उन्हे पक्षियों को देखना खूब भाता था। लॉकडाउन में उन्होंने काफी करीब से पक्षियों को जाना, जो उन्हे बहुत अच्छा लगा।
फिर इन्होंने भी स्मिता आंटी से प्रेरणा लेकर अपने भी घर में मूंगफली के दाने रखना शुरू कर दिया ताकि इनके यहां पर पक्षी अपना डेरा लगा सके।
बारिश के बाद लगता है, ज्यादातर तोतों का डेरा
राधिका ने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया कि, बारिश के बाद उनके घर पर हर दिन करीबन 60-70 तोते आते हीं हैं जिस वजह से एक दिन में एक किलो मूंगफली तोतों को खिलाने में ही खत्म हो जाती हैं। लेकिन वही गर्मियों में तोतों की आने की संख्या थोड़ी कम हो जाती है।

घर पर बढ़ गई है बर्ड फीडर्स की काफी संख्या
अब समय के साथ राधिका (Radhika Sonawane) के घर में बर्ड फीडर्स की काफी संख्या बढ़ गई है। वर्तमान समय में उनके घर पर बुलबुल, मैना, दो किस्मों के तोते, कौवे, वीवर बर्ड, चिड़िया सहित करीबन छह से सात किस्मों के पक्षी आते हैं।
बता दें कि, राधिका ने अपने घर के हॉल की बालकनी और किचन बालकनी दोनों जगहों पर फीडर लगाया हुआ हैं, जहाँ प्रत्येक पक्षियों के पसंद के खाने पीने की सभी चीजें मौजूद रहती है।
पक्षियों के पसंद के खाने के चीजों का रखा जाता है विशेष प्रकार से ध्यान
आज के समय में राधिका के घर पर सभी तरह के पक्षियों के खाने का विशेष ध्यान रखा जाता है। उन्होंने बताया कि, उनके यहां तो कुछ पक्षी तो सिर्फ पानी पीने हीं आते हैं तो कुछ पक्षी उनके घर के किचन में जाकर भी कुछ खाना लेकर जाते हैं।
ऐसे में एक बार राधिका ने देखा कि बुलबुल केला खा रही है, जिसके बाद से उन्होंने केला काटकर रखना शुरू कर दिया। बाकी पक्षियों जैसे कि कौवों के लिए वे रोटी और घर का पका खाना भी रखती हैं इसके अलावें चिड़ियों के लिए चावल रखती हैं।
अब घर पर मिलता है प्राकृतिक माहौल
राधिका (Radhika Sonawane) ने बताया कि, लोगों ने बताता कि जहां पौधे ज्यादा होते हैं, वहां पक्षी ज्यादा डेरा लगाते हैं इसलिए हमने भी अपने घर पर धीरे- धीरे करके ज्यादा पौधा लगा दिया है, जिसके कारण अब हमारे यहां पक्षियों को प्राकृतिक माहौल मिलता है साथ हीं हमे भी प्राकृतिक सुकून मिलता है। इसके अलावे हमने पक्षियों को और भी ज्यादा प्राकृतिक माहौल देने के लिए एक सूखा गार्डेन भी सजाया है, जहां हरियाली के कारण हमारे घर की सुंदरता और भी ज्यादा बढ़ गई है।
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